Ghazel Ke Bahane, Desh Ke Tarane
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नीलाम करके भगवान बेंच देते हैं,
आदमी इंसान की पहचान बेंच देते हैं.
हाय रे वक्त गरीबों की गरीबी का,
कभी कभी तो दिलोजान बेंच देते हैं.
मुफलिसी में न कोई मददगार हुआ,
मजबूर अपना मकान बेंच देते हैं.
मुसीबतों का अगरचे पहाड़ टूट पड़े,
बेकस दिनों इमान बेंच देते हैं.
भूल जाते हैं वो कुरान औ गीता,
बेरहम इंसा इ इंसान बेंच देते हैं.
गरीबों के पासदार का जमीर सो गया,
“मधुकर” अपने दिल का अरमान बेंच देते हैं.
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