Ghazel Ke Bahane, Desh Ke Tarane
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खुश्बू लाख छिपाएं वो महकती जरूर है;
जब बन गयी कली तो खिलती जरूर है.
बागों के बहारों में कहीं बैठी हो बुलबुल;
कितनी भी मुशिकलें हो चहकती जरूर है.
बज रहे कहीं पर अच्छी धुनों के साज;
नर्तकी तब दिल में मचलती जरूर है.
आ गयी घटायें घिरके अगर वे काली;
उसमें कहीं तो बिजली चमकती जरूर है.
बा वफ़ा से बेवफा जब बन गयी यारा ;
पहलू से वो मधुकर के फिसलती जरूर है.
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